दोस्तों, आज हम जानेंगे न्यूनतम वेतनमान के प्रावधान के बारे में, जिस प्रकार देश में समान काम और समान वेतन की बात होती है परन्तु कभी न्यूनतम वेतन के बारे में बात नहीं होती है। खासकर प्राइवेट संस्थाओं में काम करने वाले कर्मचारी हमेशा से शोषित होते आ रहे हैं, उनसे काम तो पूरा लिया जाता है परन्तु जब बात आती है सैलरी की तब उन्हें उनका वाज़िब वेतनमान नहीं मिल पता। इस लेख के माध्यम से जानेंगे की न्यूनतम वेतनमान होता क्या है, इसके प्रावधान क्या-क्या है।
Saman Kam Saman Vetan Ke Tarj Par Nyuntam Vetan Bhi |
आज कल चर्चा में क्यों है?
हाल ही में ‘केंद्रीय श्रम और रोजगार मंत्रालय’ (The Union Labour and Employment Ministry) द्वारा ‘वेतन संहिता अधिनियम’, 2019 (Wages Code Act, 2019) के कार्यान्वयन के लिये तैयार किये गए मसौदे के नियमों पर विभिन्न पक्षों की राय जानने के लिये प्रकाशित किया गया है।
न्यूनतम वेतनमान क्या है ?
न्यूनतम वेतनमान, नियोक्ता द्वारा किसी निश्चित काम के बदले अपने कामगार को दिया जाने वाला पारिश्रमिक है, जिसमे नियोक्ता किसी भी स्थिति में सरकार द्वारा तक की गयी न्यूनतम वेतनमान देने से मुकर नहीं सकता। न्यूनतम वेतनमान सरकार द्वारा निर्धारित एक वेतन की सीमा है जिससे की कामगार अपना गुजारा आसानी से कर सके। सरकार विभिन्न पहलुओं को ध्यान में रखकर यह सीमा तय करती है।
वेतन संहिता अधिनियम प्रमुख बिंदु:
- वेतन संहिता अधिनियम, 2019 सभी को न्यूनतम मज़दूरी की गारंटी प्रदान करता है।
- यह अधिनयम परिभाषित करता है कि मज़दूरी की गणना कैसे की जाए तथा सभी राज्यों के लिये एक समान मज़दूरी भुगतान का निर्धारण किस प्रकार किया जाए।
- इस मसौदे के प्रकाशित होने की तिथि (7 जुलाई) से 45 दिनों के अंदर विभिन्न पक्ष अपनी प्रतिक्रिया/राय दे सकते हैं।
- संसद द्वारा इसे अगस्त, 2019 में पारित कर दिया गया था।
- इससे देश में लगभग 50 करोड़ कामगारों को लाभ मिलेगा।
- वेतन संहिता, श्रम सुधारों का हिस्सा है और केंद्र सरकार द्वारा इस दिशा में उठाये गये कदम के तहत पहला कानून है।
- केंद्र सरकार 44 केंद्रीय श्रम कानूनों को चार संहिता में समाहित करने की दिशा में कार्य कर रही है, जिनमें शामिल है-
- मज़दूरी संहिता
- औद्योगिक संबंध
- सामाजिक सुरक्षा
- व्यावसायिक स्वास्थ्य एवं सुरक्षा संहिता
विशेषताएँ:
- वेतन संहिता अधिनियम-2019 में मज़दूरी, बोनस और उससे जुड़े मामलों से संबंधित कानून को संशोधित और एकीकृत किया गया है।
- इस संहिता में चार श्रम कानून को समाहित किया जाएगा, जिनमें शामिल है-
- न्यूनतम मज़दूरी कानून, 1948 (Minimum Wages Act, 1948)
- मज़दूरी भुगतान कानून, 1936 (Payment of Wages Act, 1936)
- बोनस भुगतान कानून, 1965 (Payment of Bonus Act, 1965)
- समान पारितोषिक कानून, 1976 (Equal Remuneration Act, 1976)
- वेतन संहिता अधिनियम-2019 में पूरे देश में एक समान वेतन एवं उसका सभी कर्मचारियों को समय पर भुगतान किये जाने का प्रावधान किया गया है।
- इस संहिता में न्यूनतम मज़दूरी का आकलन न्यूनतम जीवन-यापन की स्थिति के आधार पर किये जाने का प्रावधान है।
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वेतन संहिता अधिनियम-2019 में परिवर्तन:
- वेतन संहिता अधिनियम- 2019 में आठ घंटे कार्य करने का प्रावधान किया गया है परंतु ऐसी संभावना व्यक्त की जा रही है कि ‘लॉकडाउन' के दौरान कुछ राज्यों में उत्पादन में हुए नुकसान की भरपाई के लिये कामकाजी घंटे बढ़ाए जा सकते हैं।
- दैनिक आधार पर, न्यूनतम वेतन की गणना करने के लिये आधार:
- मानक श्रमिक परिवार वर्ग, जिसमे कामगार के अलावा उसकी पत्नी या उसका पति और दो बच्चें शामिल हो।
- प्रति दिन उपभोग इकाई हेतु निवल 2,700 कैलोरी की खपत।
- मानक श्रमिक परिवार वर्ग द्वारा प्रति वर्ष 66 मीटर कपडे का प्रयोग।
- आवासीय किराया व्यय जो भोजन और वस्त्र व्यय का 10 प्रतिशत होगा।
- ईंधन, बिज़ली, और व्यय की अन्य विविध मदें जो न्यूनतम मज़दूरी की 20% होंगी।
- बच्चों की शिक्षा पर व्यय, चिकित्सा आवश्यकताएँ, मनोरंजन और अन्य आकस्मिक व्यय जो न्यूनतम मज़दूरी का 25 प्रतिशत होगा।
महत्त्व:
- वर्तमान समय में मज़दूरी के संदर्भ में विभिन्न श्रम कानूनों को अलग-अलग रुप में परिभाषित किया गया है, जिसके चलते इनके क्रियान्वयन में काफी कठिनाई के साथ कानूनी विवाद भी बढ़ जाता है।
- संहिता में विभिन्न श्रम कानूनों को सरलीकृत किया गया है जिससे इस बात की संभावना अधिक प्रबल होती है कि इससे कानूनी विवादों को कम करने में मदद मिलेगी इसके अलावा नियोक्ताओं के लिये अनुपालन लागत भी कम होगी।
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