कौशिल्या माता मंदिर चंद्रखुरी रायपुर | दुनिया का एकमात्र कौशिल्या देवी मंदिर |

चंद्रखुरी रायपुर (कौशल्या माता मंदिर):

कौशल्या मंदिर रायपुर जिले के आरंग विकासखंड के अंतर्गत चंद्रखुरी नामक एक छोटे से गांव में स्थित है। छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर से 27 किमी पूर्व दिशा में एक सुंदर विशाल जल सेना जलाशय के मध्य में स्थित है।दुनिया का एकमात्र कौशिल्या देवी मंदिर छत्तीसगढ़ में ही चंद्रखुरी रायपुर में ही स्थित। है 

कौशिल्या माता मंदिर चंद्रखुरी रायपुर
 कौशिल्या माता मंदिर चंद्रखुरी रायपुर 


मंदिर की ऐतिहासिकता:

छत्तीसगढ़ का प्राचीन नाम कोसल था। रामायण काल में छत्तीसगढ़ का अधिकांश भाग दण्डकारण्य क्षेत्र के अंतर्गत आता था। यह क्षेत्र उन दिनों दक्षिणापथ भी कहलाता था। यह रामवनगमन पथ के अंतर्गत है इस कारण श्रीरामचंद्र जी के यहां वनवास काल में आने की जनश्रुति मिलती है। उनकी माता की जन्मस्थली होने के कारण उनका इस क्षेत्र में आगमन ननिहाल होने की पुष्टि करता है। चंद्रखुरी स्थित माता कौशल्या मंदिर का जीर्णोद्धार 1973 में किया गया था। पुरातात्विक दृष्टि से इस मंदिर के अवशेष सोमवंशी कालीन आठवीं-नौंवी ईस्वीं का माना जाता है।

यहां स्थित जलसेन तालाब के आगे कुछ दूरी पर प्राचीन शिव मंदिर चंद्रखुरी जो इसके समकालीन स्थित है, पाषण से निर्मित इस शिव मंदिर के भग्नावशेष की कलाकृति है। इस तालाब में सेतु बनाया गया है। सेतु से जाकर इस मंदिर के प्रांगण में संरक्षित कलाकृतियों से माता कौशल्या का यह मंदिर जलसेन तालाब के मध्य में स्थित है, जहां तक पहुंचा जा सकता है। जलसेन तालाब लगभग 16 एकड़ क्षेत्र में विस्तृत है, इस सुंदर तालाब के चारों और लबालब जलराशि में तैरते हुए कमल पत्र एवं कमल पुष्प की सुंदरता इस जलाशय की सुंदरता को बढ़ाती है। जिससे इस मंदिर की नैसर्गिक सुंदरता एवं रमणीयता और बढ़ जाती है। प्राकृतिक सुषमा के अनेक अनुपम दृश्य इस स्थल पर दृष्टिगोचर होते हैं। इस मंदिर के गर्भगृह में मां कौशल्या की गोद में बालरुप में भगवान श्रीरामजी की वात्सल्यम प्रतिमा श्रद्धालुओं एवं भक्तों का मन मोह लेती है।चंद्रखुरी सैंकड़ों साल पूर्व तक चंद्रपुरी (देवताओं की नगरी) मानी जाती थी। कालातंर में चंद्रपुरी से चंद्रखुरी हो गया। चंद्रखुरी-चंद्रपुरी का अपभ्रन्श है। जलसेन के संबंध में कहावत है कि यह इस क्षेत्र का सबसे बड़ा तालाब था। 

कौशिल्या माता मंदिर चंद्रखुरी रायपुर
 कौशिल्या माता मंदिर चंद्रखुरी रायपुर 


मंदिर की पौराणिकता:

वाल्मिकी रामायण के अनुसार अयोध्यापति युवराज दशरथ के अभिषेक के अवसर पर कोसल नरेश भानुमंत को अयोध्या आमंत्रित किया गया था। ततो कोशल राजा भानुतमं समुद्रधृतम अर्थात राजा दशरथ जब युवराज थे, उनके अभिषेक के समय कोसल राजा श्री भानुमन्त को भी अयोध्या आमंत्रित किया गया था। इसी अवसर पर युवराज द्वारा राजकुमारी भानुमति जो अपने पिता के साथ अयोध्या गयी थी, उनकी सुंदरता से मुग्ध होकर युवराज दशरथ ने भानुमंत की पुत्री से विवाह का प्रस्ताव रखा, तभी कालांतर में युवराज दशरथ एवं कोसल की राजकन्या भानुमति का वैवाहिक संबंध हुआ। कोसल की राजकन्या भानुमति को विवाह उपरांत कोसल राजदूहिता होने के कारण कौशल्या कहा जाने लगा। रानी कौशल्या को कोख से प्रभु राम का जन्म हुआ।

सात तालाबों से घिरा है माता कौशल्या का यह मंदिर:

करीब 126 तालाब वाले इस गांव में सात तालाबों से घिरे जलसेन तालाब के बीच प्राचीन द्वीप पर एक ऐसा मंदिर है, जहां भगवान श्रीराम की माता कौशल्या की प्रतिमा स्थापित है और रामलला उनकी गोद में विराजमान हैं।

द्वीप पर स्थित कौशल्या माता का मंदिर हरियाली और मंदिरों से घिरा हुआ है। भगवान शिव और नंदी की विशाला प्रतिमा यहां स्थित है। द्वीप के द्वार पर हनुमान जी विराजमान हैं। दशरथ जी का दरबार यहां लगा है। मन्नत का एक पेड़ भी यहां स्थित है। सुषेण वैद्य की समाधी है।

मन्नत मांगने की परंपरा:

मंदिर परिसर में ही सीताफल का एक पेड़ है, जहां पर्ची में नाम लिखकर उसे श्रीफल के संग बांधा जाता है। कहा जाता है कि ऐसे मन्नत मांगने पर मांगी गई मन्नत पूरी होती है। असल में जहां पेड़ है, उस स्थान पर पहले नागराज की बड़ी बाम्बी हुआ करती थी और मान्यता है कि मन्नत नागराज ही पूरी करते हैं।

लंका पति रावण के राजवैद्य सुषेण से जुड़ी कहानी:

कौशल्या मंदिर के पास ही सुषेण वैद की समाधी भी है। सुषेण/सुखैन वैद्य का उल्लेख रामायण में हुआ है। रामायण के अनुसार सुषेण वैद्य लंका के राजा राक्षस-राज रावण का राजवैद्य था। जब रावण के पुत्र मेघनाद के साथ हुए भीषण युद्ध में लक्ष्मण घायल होकर मूर्छित हो गए, तब सुषेण वैद्य ने ही लक्ष्मण की चिकित्सा की थी। उसके यह कहने पर कि मात्र संजीवनी बूटी के प्रयोग से ही लक्ष्मण के प्राण बचाए जा सकते हैं, राम भक्त हनुमान ने वह बूटी लाकर दी और लक्ष्मण को नवजीवन मिला। कहा जाता है कि रावण के अंत के बाद लंका से भगवान राम के साथ सुषेण/सुखैन वैद्य भी आए थे और यहां चंदखुरी में ही उन्होंने प्राण त्यागा था।

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