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सिरपुर (महासमुंद) |
स्थल: सिरपुर (Sirpur)
जिला: महासमुंद, छत्तीसगढ़
दूरी: रायपुर से दूरी 82 किलोमीटर
बिलासपुर से दूरी 113 किलोमीटर
महासमुंद से दूरी 37 किलोमीटर
बलोदा बाजार से दूरी 56 किलोमीटर
सिरपुर (महासमुंद):
अंतराष्ट्रीय पर्यटन मानचित्र पर महानदी के तट पर स्थित सिरपुर (Sirpur) अपनी ऐतिहासिक एवं पुरातात्विक महत्ता के कारण आकर्षण का केंद्र हैं। यह पांचवी से आठवीं शताब्दी के मध्य दक्षिण कोसल की राजधानी थी। यह स्थल पवित्र महानदी के किनारे पर बसा हुआ हैं। सिरपुर में सांस्कृतिक एंव वास्तुकौशल की कला का अनुपम संग्रह हैं। पुरातन काल (सोमवंशी राजाओ का काल) में सिरपुर (Sirpur) को `श्रीपुर` के नाम से जाना जाता था तथा यह दक्षिण कोसल की राजधानी थी भारतीय इतिहास में सिरपुर अपने धार्मिक मान्यताओ और वैज्ञानिक दृष्टिकोण के कारण आकर्षण का केन्द्र था।सिरपुर में महानदी का वही स्थान है जो भारत में गंगा नदी का है।
सिरपुर का प्राचीन नाम श्रीपुर है, इतिहासकारों के अनुसार सिरपुर पांचवीं शताब्दी के मध्य दक्षिण कौसल की राजधानी रह चुका है। छठी शताब्दी में चीनी यात्री व्हेनसांग भी यहां आया था।
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सिरपुर (Sirpur) महोत्सव की शुरुआत :
छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह और संस्कृति एवं पर्यटन मंत्री बृजमोहन अग्रवाल के विशेष पहल पर स्थानीय लोगों की मांग पर वर्ष 2006 से सिरपुर (Sirpur) महोत्सव का आयोजन किया जा रहा है। इस महोत्सव से सिरपुर को राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान मिली है।
महोत्सव के आयोजन के बाद से पुरातात्विक स्थलों के उत्खनन में भी तेजी आई है। स्थलों के उत्खनन से बड़े-बड़े शिव मंदिरों सहित विशेष रूप से यहां पंचायत शैली का मंदिर मिले हैं जो कि पंचायतन शैली में निर्मित भारत का सबसे बड़ा मंदिर है। इसके अलावा बौद्धिक स्तूप और राज प्रसाद भी नए उत्खनन में मिले हैं।
लक्ष्मण मंदिर:
यह मंदिर सोमवंशी राजा हर्षगुप्त की विधवा रानी बासटा देवी द्वारा बनवाया गया था। छठी शताब्दी में निर्मित भारत का सबसे पहले ईंटों से बना मंदिर है।
अलंकरण, सौंदर्य, मौलिक अभिप्राय तथा निर्माण कौशल की दृष्टि से यह अपूर्व है। लगभग 07 फुट ऊंची पाषाण निर्मित जगती पर स्थित यह मंदिर रानी बासटा, महाशिव गुप्त बालार्जुन की माता एवं मगध के राजा सूर्यबर्मन की पुत्री थी, यह अत्यंत भव्य है।
पंचस्थ प्रकार का यह मंदिर गर्भगृह, अंतराल तथा मंडप से संयुक्त है। मंदिर के बाह्य भित्तियों पर कूट-द्वार बातायन आकृति चैत्य गवाक्ष, भारवाहकगर्ण, गज, कीर्तिमान आदि अभिप्राय दर्शनीय है। मंदिर का प्रवेश द्वार अत्यंत सुंदर है। सिरदल पर शेषदायी विष्णु प्रदर्शित है। उभय द्वार शाखाओं पर विष्णु के प्रमुख अवतार विष्णु लीला के दृश्य अलंकारात्मक प्रतीक, मिथुन दृश्य तथा वैष्णव द्वारपालों का अंकन है। गर्भगृह में रागराज अनंत शेष की बैठी हुई सौम्य प्रतिमा स्थापित है।
पुरातात्विक नगरी सिरपुर (Sirpur) में वैसे तो प्रायः हर तालाब और पाण्डुवंशीय काल में बड़े-बड़े मंदिरों, का निर्माण हुआ। जिनमें त्रिदेव मंदिर भी प्रमुख है। जिसका प्रवेश द्वार कम से कम दस फुट चौड़ा था। इसी दौरान सुरंग टीला पंचायतन मंदिर गंधेश्वर मंदिर के सामने बड़ा शिव मंदिर आदि का निर्माण हुआ। सिरपुर में गंधेश्वर मंदिर महानदी के पावन तट पर है, जहां इसका निर्माण हुआ।
गंधेश्वर महादेव मंदिर:
गंधेश्वर महादेव मंदिर महानदी के तट पर स्थित एक भगवान शिव जी का एक प्राचीन मंदिर है, इस मंदिर का जीर्णोद्धार चिमनाजी भोंसले द्वारा कराये जाने का प्रमाण प्राप्त होता है। इस मंदिर के 2 स्तम्भों पर शिलालेख भी प्राप्त हुए हैं। इस मंदिर का निर्माण सिरपुर के अवशेषों से किया गया है प्रतीत होता है।
बौद्ध विहार:
सिरपुर हिन्दू तीर्थ होने के साथ- साथ बौद्ध संस्कृति का भी केंद्र रहा है। इस जगह पर अनेक बौद्ध धर्म के प्राचीन साक्ष्य मिले हैं जो यह बताते हैं की यह जगह बौद्ध धर्म के लिए एक महत्वपूर्ण आध्यात्मिक स्थान था जिसके कारण ही यहाँ बौद्ध गुरु दलाई लामा का भी प्रवास हुआ था। इस जगह पर बौद्ध स्तूप का अवशेष देखने लायक है साथ ही साथ अनेक भगावन बुद्ध के अवशेष तथा खंडित शिलायें जिन पर अनेक कलाकृति उकेरी गयी है देख कर लगता है मानो प्राचीन समय का यह दौर कितना विकसित रहा होगा। सिरपुर (Sirpur) को प्राचीन काल का स्मार्ट सिटी होने का भी दर्जा प्राप्त है।
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