वर्मी कम्पोस्ट क्या है? कैसे बनाते हैं ? छत्तीसगढ़ सरकार क्यों इस पर इतना ध्यान दे रही है ? Varmi Composting |

वर्मी कम्पोस्ट क्या है? कैसे बनाते हैं ?
वर्मी कम्पोस्ट क्या है? कैसे बनाते हैं ?

वर्मी कम्पोस्ट क्या है ? What is Vermi Compost?

वर्मी कम्पोस्ट  (Vermicompost) जिसे केंचुआ खाद के नाम से भी जानते हैं, एक ऐसा खाद है जो केंचुआ आदि कीड़ों के द्वारा वनस्पतियों और अवशिष्ट भोज्य पदार्थों को विघटित कर बनाया जाता है। वनस्पति तथा भोजन के कचरों से बनाये जाने के कारण यह पोषक तत्वों से भरा एक उत्तम जैव उर्वरक है। 

वर्मी कम्पोस्ट में बदबू नहीं होती है और मक्खी एवं मच्छर नहीं बढ़ते है तथा वातावरण प्रदूषित नहीं होता है। तापमान नियंत्रित रहने से जीवाणु क्रियाशील तथा सक्रिय रहते हैं। वर्मी कम्पोस्ट डेढ़ से दो माह के अंदर तैयार हो जाता है। इसमें 2.5 से 3% नाइट्रोजन, 1.5 से 2% सल्फर तथा 1.5 से 2% पोटाश पाया जाता है।

केंचुआ खाद की विशेषताएँ : 

  • इस खाद में बदबू नहीं होती है, तथा मक्खी, मच्छर भी नहीं बढ़ते है जिससे वातावरण स्वस्थ रहता है।
  • इससे सूक्ष्म पोषित तत्वों के साथ-साथ नाइट्रोजन 2 से 3 प्रतिशत, फास्फोरस 1 से 2 प्रतिशत, पोटाश 1 से 2 प्रतिशत मिलता है।
  • इस खाद को तैयार करने में प्रक्रिया स्थापित हो जाने के बाद एक से डेढ़ माह का समय लगता है।
  • प्रत्येक माह एक टन खाद प्राप्त करने हेतु 100 वर्गफुट आकार की नर्सरी बेड पर्याप्त होती है।
  • केचुँआ खाद की केवल 2 टन मात्रा प्रति हैक्टेयर आवश्यक है।
  • वर्मी कम्पास्ट, सामान्य कम्पोस्टिंग विधि से एक तिहाई समय (2 से 3 माह) में ही तैयार हो जाता है।
  • वर्मी कम्पोस्ट में गोबर की खाद (एफ.वाई.एम.) की अपेक्षा नाइट्रोजन, फास्फोरस, पोटाश तथा अन्य सूक्ष्म तत्व अधिक मात्रा में पाये जाते हैं।
  • वर्मी कम्पोस्ट के सूक्ष्म जीव, एन्जाइम्स, विटामिन तथा वृद्विवर्धक हार्मोन प्रचुर मात्रा में पाये जाते हैं।
  • केंचुआ द्वारा निर्मित खाद को मिट्टी में मिलाने से मिट्टी की उपजाऊ एवं उर्वरा शक्ति बढ़ती है, जिसका प्रत्यक्ष प्रभाव पौधों की वृद्धि पर पड़ता है।
  • वर्मी कम्पोस्ट वाली मिट्टी में भू-क्षरण कम होता है तथा मिट्टी की जलधारण क्षमता में सुधार होता है।
  • खेतों में केंचुओं द्वारा निर्मित खाद के उपयोग से खरपतवार व कीड़ो का प्रकोप कम होता है तथा पौधों की रोग रोधक क्षमता भी बढ़ती है।
  • वर्मी कम्पास्ट के उपयोग से फसलों पर रासायनिक उर्वरकों तथा कीटनाशकों की मांग कम होती है जिससे किसानों का इन पर व्यय कम होता है।
  • वर्मी कम्पोस्ट से प्राकृतिक संतुलन बना रहता है, साथ ही भूमि, पौधों या अन्य प्राणियों पर कोई दुष्प्रभाव नहीं पड़ता।

कैसे करें इस्तेमाल:

वर्मीकम्पोस्ट खाद को खेतों में बुवाई करने से पहले सूखे में डाल देना चाहिए। सब्जी वाली फसलों में वर्मीकम्पोस्ट 2-3 टन प्रति एकड़ की दर से डालना चाहिए। इसी तरह दलहन और तिलहन में भी 2-3 टन वर्मीकम्पोस्ट खाद डालनी चाहिए। 

फायदे:

वर्मीकम्पोस्ट के फायदें - 
  1. वर्मीकम्पोस्ट फसलों के लिये सम्पूर्ण पोषक खाद है। 
  2. इसका प्रभाव अधिक दिन तक खेत में रहता है और पोषक तत्व धीरे-धीरे पौधों को प्राप्त होते हैं, जबकि उर्वरक का प्रभाव शीघ्र खत्म होने वाला होता है।
  3. वर्मीकम्पोस्ट में जीवांश की मात्रा अधिक होती है, जिससे मृदा में जल शोषण तथा जल धारण शक्ति बढ़ती है एवं भूमि के कटाव को भी रोकने में मदद मिलती है, जबकि उर्वरक के प्रयोग से यह लाभ नहीं होते। 
  4. इसमें हयूमिक एसिड होता है, जो जमीन के पी एच मान को कम करने में सहायक होता है। उसर भूमि को सुधारने में इसका महत्वपूर्ण योगदान है, जबकि उर्वरक का अधिक प्रयोग मिटटी को उसरीला बनाता हैं। 
  5. इसके बनाने में घर के आसपास के कूड़े-कचरे, जानवरों के मल-मूत्र और पौधों के अवशेष का प्रयोग होता है, जिससे वातावरण भी साफ सुथरा रहता है। 
  6. वर्मीकम्पोस्ट के प्रयोग से बीजों का जमाव प्रतिशत अधिक होता है और जड़ों का विकास भी अधिक होता है।

वर्मी कम्पोस्ट बनाने की प्रक्रिया को हम 2 तरीकों में विभाजित कर सकते हैं पहला गावों की ट्रेडिशनल तरीका और दूसरा है एक आदर्श तरीका। पहले हम जानतें हैं की गावों में बहुत की कम खर्चों में बनाने वाले वर्मी कम्पोस्ट के बारे में। 

वर्मी कम्पोस्ट बनने का ट्रेडिशनल तरीका:

1. पेड़ विधि:

पेड़ के चारों ओर गोबर गोलाई में डाला जाता है। हर रोज गोबर को डालकर धीरे-धीरे इस गोल चक्र को पूरा किया जाता है। पहली बार प्रक्रिया शुरू करते समय गोबर के ढेर में थोड़े से केंचुए डाल कर गोबर को जूट के बोरे से ढक दिया जाता है। नमी के लिए बोर के ऊपर समय-समय पर पानी का छिड़काव किया जाता है। केंचुए डाले गए गोबर को खाते हुए धीरे-धीरे आगे बढ़ते जाते हैं और अपने पीछे वर्मी कम्पोस्ट बना कर छोड़ते जाते हैं। इस तैयार वर्मी कम्पोस्ट को इकठ्ठा करके बोरों में भरकर रख लिया जाता है।

2. बेड विधि:

छायादार जगह पर जमीन के ऊपर 2-3 फुट की चौड़ाई और अपनी आवश्यकता के अनुरूप लम्बाई के बेड बनाये जाते हैं। इन बेड़ों का निर्माण गाय-भैंस के गोबर, जानवरों के नीचे बिछाए गए घासफूस-खरपतवार के अवशेष आदि से किया जाता है। ढेर की ऊंचाई लगभग लगभग 01 फुट तक रखी जाती है। बेड के ऊपर पुवाल और घास डालकर ढक दिया जाता है। एक बेड का निर्माण हो जाने पर उसके बगल में दूसरे उसके बाद तीसरे बेड बनाते हुए जरूरत के अनुसार कई बेड बनाये जा सकते हैं। शुरुआत में पहले बेड में केंचुए डालने होते हैं जोकि उस बेड में उपस्थित गोबर और जैव-भार को खाद में परिवर्तित कर देते हैं। एक बेड का खाद बन जाने के बाद केंचुए स्वतः ही दूसरे बेड में पहुंच जाते हैं। इसके बाद पहले बेड से वर्मी कम्पोस्ट अलग करके छानकर भंडारित कर लिया जाता है तथा पुनः इस पर गोबर आदि का ढेर लगाकर बेड बना लेते हैं।

3. टटिया विधि:

प्लास्टिक की बोरी या तिरपाल से बांस के माध्यम से टटिया बनाकर वर्मी कम्पोस्ट का निर्माण किया जाता है। इस विधि में प्लास्टिक की बोरियों को खोलकर कई को मिलाकर सिलाई की जाती है। फिर बांस या लट्ठे के सहारे चारो ओर से सहारा देकर गोलाई में रख कर उसमें गोबर डाल दिया जाता है। गोबर में केंचुए डालकर टटिया विधि से वर्मी कम्पोस्ट का निर्माण किया जाता है। जिसमें लागत न के बराबर आती है।

वर्मी कम्पोस्ट बनाने की आदर्श विधि:

1. सामान्य विधि (General Method)

वर्मीकम्पोस्ट बनाने के लिए इस विधि में क्षेत्र का आकार (area) आवश्यकतानुसार रखा जाता है किन्तु मध्यम वर्ग के किसानों के लिए 100 वर्गमीटर क्षेत्र पर्याप्त रहता है। अच्छी गुणवत्ता की केंचुआ खाद बनाने के लिए सीमेन्ट तथा इटों से पक्की क्यारियां (Vermi-beds) बनाई जाती हैं। प्रत्येक क्यारी की लम्बाई 3 मीटर, चौड़ाई 1 मीटर एवं ऊँचाई 30 से 50 सेमी0 रखते हैं। 100 वर्गमीटर क्षेत्र में इस प्रकार की लगभग 90 क्यारियां बनाई जा सकती है। क्यारियों को तेज धूप व वर्षा से बचाने और केंचुओं के तीव्र प्रजनन के लिए अंधेरा रखने हेतु छप्पर और चारों ओर टटि्‌टयों से हरे नेट से ढकना अत्यन्त आवश्यक है।

क्यारियों को भरने के लिए पेड़-पौधों की पत्तियाँ घास,सब्जी व फलों के छिलके, गोबर आदि अपघटनशील कार्बनिक पदार्थों का चुनाव करते हैं। इन पदार्थों को क्यारियों में भरने से पहले ढ़रे बनाकर 15 से 20 दिन तक सड़ने के लिए रखा जाना आवश्यक है। सड़ने के लिए रखे गये कार्बनिक पदार्थों के मिश्रण में पानी छिड़क कर ढेऱ को छोड़ दिया जाता है। 15 से 20 दिन बाद कचरा अधगले रूप (Partially decomposed ) में आ जाता है। ऐसा कचरा केंचुओं के लिए बहुत ही अच्छा भोजन माना गया है। अधगले कचरे को क्यारियों में 50 से.मी. ऊँचाई तक भर दिया जाता है। कचरा भरने के 3-4 दिन बाद पत्तियों की क्यारी में केंचुऐं छोड़ दिए जाते हैं और पानी छिड़क कर प्रत्येक क्यारी को गीली बोरियो से ढक देते है। एक टन कचरे से 0.6 से 0.7 टन केंचुआ खाद प्राप्त हो जाती है।

2. चक्रीय चार हौद विधि ( Four Pit Method)

क्यारी तैयार करने का तरीका:

इस विधि में चुने गये स्थान पर 12’x12’x2.5’(लम्बाई x चौड़ाई x ऊँचाई) का गड्‌ढा बनाया जाता है। इस गड्‌ढे को ईंट की दीवारों से 4 बराबर भागों में बांट दिया जाता है। इस प्रकार कुल 4 क्यारियां बन जाती हैं। प्रत्येक क्यारी का आकार लगभग 5.5’ x 5.5’ x 2.5’ होता है। बीच की विभाजक दीवार मजबूती के लिए दो ईंटों (9 इंच) की बनाई जाती है। विभाजक दीवारों में समान दूरी पर हवा व केंचुओं के आने जाने के लिए छिद्र छोड़ जाते हैं। इस प्रकार की क्यारियों की संख्या आवश्यकतानुसार रखी जा सकती है।

क्यारी में खाद बनाने का तरीका:

इस विधि में प्रत्येक क्यारी को एक के बाद एक भरते हैं अर्थात पहले एक महीने तक पहला गड्‌ढा भरते हैं पूरा गड्‌ढा भर जाने के बाद पानी छिड़क कर काले पॉलीथिन से ढक देते हैं ताकि कचरे के विघटन की प्रक्रिया आरम्भ हो जाये। इसके बाद दूसरे गड्‌ढे में कचरा भरना आरम्भ कर देते हैं। दूसरे माह जब दूसरा गड्‌ढा भर जाता है तब ढक देते हैं और कचरा तीसरे गड्‌ढे में भरना आरम्भ कर देते हैं। इस समय तक पहले गड्‌ढे का कचरा अधगले रूप में आ जाता है। 

एक दो दिन बाद जब पहले गड्‌ढे में गर्मी (heat) कम हो जाती है तब उसमें लगभग 5 किग्रा0 (5000) केंचुए छोड़ देते हैं। इसके बाद गड्‌ढे को सूखी घास अथवा बोरियों से ढक देते हैं। कचरे में गीलापन बनाये रखने के लिए आवश्यकतानुसार पानी छिड़कते रहते है। इस प्रकार 3 माह बाद जब तीसरा गड्‌ढा कचरे से भर जाता है तब इसे भी पानी से भिगो कर ढक देते हैं और चौथे को गड्‌ढे में कचरा भरना आरम्भ कर देते हैं। धीरे-धीरे जब दूसरे गड्‌ढे की गर्मी कम हो जाती है तब उसमें पहले गड्‌ढे से केंचुए विभाजक दीवार में बने छिद्रों से अपने आप प्रवेश कर जाते हैं और उसमें भी केंचुआ खाद बनना आरम्भ हो जाती है। इस प्रकार चार माह में एक के बाद एक चारों गड्‌ढे भर जाते हैं। 

इस समय तक पहले गड्‌ढे में जिसे भरे हुए तीन माह हो चुके हैं केंचुआ खाद (वर्मी कम्पोस्ट) बनकर तैयार हो जाती है। इस गड्‌ढे के सारे केंचुए दूसरे एवं तीसरे गड्‌ढे में धीरे-धीरे बीच की दीवारों में बने छिद्रों द्वारा प्रवेश कर जाते हैं। अब पहले गड्‌ढे से खाद निकालने की प्रक्रिया आरम्भ की जा सकती है। खाद निकालने के बाद उसमें पुन: कचरा भरना आरम्भ कर देते हैं। इस विधि में एक वर्ष में प्रत्यके गड्‌ढे में एक बार में लगभग 10 कुन्तल कचरा भरा जाता है जिससे एक बार में 7 कुन्तल खाद (70 प्रतिशत) बनकर तैयार होती है। इस प्रकार एक वर्ष में चार गड्‌ढों से तीन चक्रों में कुल 84 कुन्तल खाद (4x3x7) प्राप्त होती है। इसके अलावा एक वर्ष में एक गड्‌ढे से 25 किग्रा0 और 4 गड्‌ढों से कुल 100 किग्रा0 केंचुए भी प्राप्त होते हैं।

केंचुआ खाद बनाने की चरणबद्ध प्रक्रिया:

  • कार्बनिक अवशिष्ट/ कचरे में से पत्थर,काँच,प्लास्टिक, सिरेमिक तथा धातुओं को अलग करके कार्बनिक कचरे के बड़े ढ़ेलों को तोड़कर ढेर बनाया जाता है।
  • मोटे कार्बनिक अवशिष्टों जैसे पत्तियों का कूड़ा, पौधों के तने, गन्ने की भूसी/खोयी को 2-4 इन्च आकार के छोटे-छोटे टुकड़ों में काटा जाता है। इससे खाद बनने में कम समय लगता है।
  • कचरे में से दुर्गन्ध हटाने तथा अवाँछित जीवों को खत्म करने के लिए कचरे को एक फुट मोटी सतह के रुप में फुलाकर धूप में सुखाया जाता है।
  • अवशिष्ट को गाय के गोबर में मिलाकर एक माह तक सड़ाने हेतु गड्डों में डाल दिया जाता है। उचित नमी बनाने हेतु रोज पानी का छिड़काव किया जाता है।
  • केंचुआ खाद बनाने के लिए सर्वप्रथम फर्श पर बालू की 1 इन्च मोटी पर्त बिछाकर उसके ऊपर 3-4 इन्च मोटाई में फसल का अवशिष्ट/मोटे पदार्थों की पर्त बिछाते हैं। पुन: इसके ऊपर चरण-4 से प्राप्त पदार्थों की 18 इन्च मोटी पर्त इस प्रकार बिछाते हैं कि इसकी चौड़ाई 40-45 इन्च बन जाती है। बेड की लम्बाई को छप्पर में उपलब्ध जगह के आधार पर रखते हैं। इस प्रकार 10 फिट लम्बाई की बेड में लगभग 500 कि.ग्रा. कार्बनिक अवशिष्ट समाहित हो जाता है। बेड को अर्धवृत्त प्रकार का रखते हैं जिससे केंचुए को घूमने के लिए पर्याप्त स्थान तथा बेड में हवा का प्रबंधन संभव हो सके। इस 17 प्रकार बेड बनाने के बाद उचित नमी बनाये रखने के लिए पानी का छिड़काव करते रहते है तत्पश्चात इसे 2-3 दिनों के लिए छोड़ देते हैं।
  • जब बेड के सभी भागों में तापमान सामान्य हो जाये तब इसमें लगभग 5000 केंचुए / 5000 ग्रा0 अवशिष्ट की दर से केंचुआ तथा कोकून का मिश्रण बेड की एक तरफ से इस प्रकार डालते हैं कि यह लम्बाई में एक तरफ से पूरे बेड तक पहुँच जाये।
  • सम्पूर्ण बेड को बारीक / कटे हुए अवशिष्ट की 3-4 इन्च मोटी पर्त से ढकते हैं, अनुकूल परिस्थितयों में केंचुए पूरे बेड पर अपने आप फलै जाते हैं। अधिकांशतः केंचुए बेड में 2 से 3 इन्च की गहराई पर रहकर कार्बनिक पदार्थों का भक्षण कर उत्सर्जन करते रहते हैं।
  • अनुकूल आर्द्रता, तापक्रम तथा हवामय परिस्थितयोंमें 25-30 दिनों के उपरान्त बडै की ऊपरी सतह पर 3-4 इन्च मोटी केंचुआ खाद एकत्र हो जाती हैं। इसे अलग करने के लिए बेड की बाहरी आवरण सतह को एक तरफ से हटाते हैं। ऐसा करने पर जब केंचुए बेड में गहराई में चले जाते हैं तब केंचुआ खाद को बडे से आसानी से अलग कर तत्पश्चात बेड को पुनः पूर्व की भाँति महीन कचरे से ढक कर पर्याप्त आर्द्रता बनाये रखने हेतु पानी का छिड़काव कर देते हैं।
  • लगभग 5-7 दिनों में केंचुआ खाद की 4-6 इन्च मोटी एक और पर्त तैयार हो जाती है। इसे भी पूर्व में चरण-8 की भाँति अलग कर लेते हैं तथा बेड में फिर पर्याप्त आर्द्रता बनाये रखने हेतु पानी का छिड़काव किया जाता है।
  • तदोपरान्त हर 5-7 दिनोंके अन्तराल में अनुकूल परिस्थतियों में पुन: केंचुआ खाद की 4-6 इन्च मोटी पर्त बनती है जिसे पूर्व में चरण-9 की भाँति अलग कर लिया जाता है। इस प्रकार 40-45 दिनोंमें लगभग 80-85 प्रतिशत केंचुआ खाद एकत्र कर ली जाती है।
  • अन्त में कुछ केचुआ खाद केंचुओं तथा केचुए के अण्डों (कोकूनद) सहित एक छोटे से ढेर के रुप में बच जाती है। इसे दूसरे चक्र में केचुए के संरोप के रुप में प्रयुक्त कर लेते हैं। इस प्रकार लगातार केंचुआखाद उत्पादन के लिए इस प्रि क्रया को दोहराते रहते हैं।
  • एकत्र की गयी केंचुआ खाद से केंचुए के अण्डों अव्यस्क केंचुओं तथा केंचुए द्वारा नहीं खाये गये पदार्थों को 3-4 से.मी. आकार की छलनी से छान कर अलग कर लेते हैं।
  • अगर नमी ज्यादा हो तो अतिरिक्त नमी हटाने के लिए छनी हुई केचुआ खाद को किसी पक्के फर्श पर फैला दिया जाता है। नमी जब 30-40 प्रतिशत तक रहती है तो इसे एकत्र कर लिया जाता है। 
  • प्लास्टिक या एच. डी. पी. ई. थैले में केंचुआ खाद को सील करके पैक किया जाता है जिससे इसमें नमी कम न हो।

वर्मीकम्पोस्ट बनाते समय ध्यान देने वाली बातें:


1. कच्चे माल (गोबर व आवश्यक कचराद्) को केंचुआ छोड़ने से पहले आंशिक विच्छेदन (Partial decomposition) हेतु वर्मी बेडों पर 15 से 20 दिन रखना अति आवश्यक होता है।

2. कच्चे मॉल का आंशिक विच्छेदन करना आवश्यक होता है, कच्चे मॉल के ढेऱ में गहराई तक हाथ डाल कर गर्मी महसूस किया जाता है अगर कोई गर्मी महसूस ना हो तब इसका पलटाई कर आंशिक विच्छेदन किया जाता है।

3. वर्मी बेडों में भरे गये कचरे में कम्पोस्ट तैयार होने तक 30 से 40 प्रतिशत नमी बनाये रखें। कचरें में नमीं कम या अधिक होने पर केंचुए ठीक तरह से कार्य नही करतें।

4. वर्मी बेडों में कचरे का तापमान 20 से 27 डिग्री सेल्सियस रहना अत्यन्त आवश्यक है। वर्मी कम्पोस्ट को तेज धूप से बचाना आवश्यक होता है क्योंकि तेज धूप पड़ने से कचरे का तापमान अधिक हो जाता है जिससे केंचुए तली में चले जाते हैं, केंचुए के तली में जाने के कारण यह अक्रियाशील रह कर अन्ततः मर जाते हैं।

5. वर्मी बेड में ताजे गोबर का उपयोग भूल कर भी नहीं करना चाहिए। ताजे गोबर में गर्मी (Heat) ज्यादा होने के कारण केंचुए मर जाते हैं अतः ताजे गोबर को 4 से 5 दिन तक ठण्डा अवश्य होने देना चाहिए।

6. केंचुआ खाद तैयार करने हेतु कार्बिनक कचरे में गोबर की मात्रा कम से कम 20 प्रतिशत अवश्य होनी चाहिए।

7. कांग्रेस घास को फूल आने से पूर्व गाय के गोबर में मिला कर कार्बनिक पदार्थ के रूप में आंशिक विच्छेदन कर प्रयोग करने से अच्छी केंचुआ खाद प्राप्त होती है।

8. कचरे का पी. एच. उदासीन (pH मान 7.0 के आसपास) रहने पर केंचुए तेजी से कार्य करते हैं अतः वर्मीकम्पोस्टिंग के दौरान कचरे का पी. एच. उदासीन बनाये रखे। इसके लिए कचरा भरते समय उसमें राख (ash) अवश्य मिलाएं।

9. केंचुआ खाद बनाने के दौरान किसी भी तरह के कीटनाशकों का उपयोग न करें।

10. खाद की पलटाई या तैयार कम्पोस्ट को एकत्र करते समय खुरपी या फावडे़ का प्रयोग कदापि न करें।

केंचुआ खाद बनाने के लिए स्थान का चुनाव:

केंचुआ खाद बनाने के लिए छायादार व नम वातावरण की आवश्यकता होती है| इसलिए घने छायादार पेड़ के नीचे या हवादार फूस के छप्पर के नीचे केंचुआ खाद बनाना चाहिये| स्थान के चुनाव के समय उचित जल निकास व पानी के स्त्रोत के नजदीक का विशेष ध्यान रखना चाहिए। 

केंचुआ खाद बनाने का उचित समय:

वैसे तो किसान भाई केंचुआ खाद वर्ष भर बना सकते हैं| लेकिन 15 से 20 डिग्री सेंटीग्रेड तापक्रम पर केंचुए अधिक कार्यशील होते हैं। 

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